मेरा क्या कसूर था? - राजकुमार इन्द्रेश


वैसे तो इस घटना ने आजादी के अमृत महोत्सव को शहीद दिवस में बदल दिया, लेकिन यह ओछी मानसिकता वाले लोग कब सुधरेंगे? सवाल आजादी के 75 साल होने के बाद भी यही का यही है इस घटना को सुन कवि राजकुमार इंद्रेश के मन से निकली ये दो पंक्तियां...


मेरा क्या,  कसूर था ? 

पानी ही तो  पिया था। 

मैं अबोध , क्या जानू 

क्या जाति , क्या पाती? 


मेरे छूने से होता मैला 

मटका फोड़,  तू देता। 

मैंने तो भगवान माना 

तू राक्षस, तो निकला। 


कहाँ गये वो हिंदूवादी 

क्या हम है भारतवासी? 

खून खोलता है अब तो 

कहाँ हैं वो समतावादी? 


वोट में तो हम हिंदूवादी 

चोट में दलित हैं,हो जाते 

मरा पड़ा है, हमारा नेता 

स्वार्थ में लीन जो रहता। 


शिक्षित होने गया मंदिर 

कफ़न ओढ़ घर लोटा हूँ। 

मंदिर के बड़े पुजारी ने 

जाति से मुझे तो मारा है। 


हे! मेरे देश की सरकारों 

क्या मुझे, न्याय मिलेगा? 

कब होगी भारत में समता 

यही प्रश्न तुमसे मैं करता? 

- राजकुमार इन्द्रेश (प्रधानाचार्य / साहित्यकार)

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