सबसे पहले प्रॉपर्टी की बिक्री से प्रतिफल की राशि लेंगे।
अगर प्रतिफल की राशि व डीएलसी में अंतर है तथा अंतर प्रतिफल के 5% से ज्यादा है तो प्रतिफल की बजाय डीएलसी की वैल्यू लेनी होगी।
अगर एग्रीमेंट की तारीख अलग हो तथा रजिस्ट्री की तारीख अलग हो तथा दोनों की तारीख में डीएलसी रेट में अंतर हो तो एग्रीमेंट की तारीख की डीएलसी ली जाएगी बशर्ते कि एग्रीमेंट के दिन या उससे पहले भुगतान बैंकिंग चैनल से हुआ हो।
अगर किसी करदाता को ऑब्जेक्शन हो कि उसकी डीएलसी की रेट बाजार दर से ज्यादा है तो वह अपने निर्धारण अधिकारी के सामने ऑब्जेक्शन करेगा तथा निर्धारण अधिकारी उस सम्पति को मूल्यांकन के लिए विभागीय मूल्यांकन कर्त्ता के पास भेजेगा।
अब प्रतिफल या डीएलसी जो भी लेनी हो, वो लेने के बाद उसमें से ट्रान्सफर के खर्चे घटेंगे जैसे ब्रोकरेज या बेचने के लिए विज्ञापन के खर्चे या औक्शनर के माध्यम से बेचा है तो उसकी फीस आदि। समान्यतया रजिस्ट्री का खर्चा क्रेता वहन करता है लेकिन अगर रजिस्ट्री का खर्चा विक्रेता ने किया है तथा रजिस्ट्री में यह बात लिखी है तो वह भी घटाया जाएगा। उसके बाद उस संपत्ति की लागत व इम्प्रोवमेंट के खर्चे लेकर, उन खर्चों की इंडेक्सिंग करेंगे फिर घटाएँगे।
अगर बेची गई संपत्ति 01.04.2001 से पूर्व में खरीदी गई है तो 01,04,2001 की फेयर मार्किट वैल्यू लेंगे तथा उसके बाद उसमें जो भी खर्चे हुए हैं वे लेंगे। फिर उनकी इंडेक्सिंग करेंगे। फिर घटाएँगे।
अगर सम्पति 01.04.2001 के बाद खरीदी है तो उसकी लागत व इम्प्रोवमेंट के खर्चे लेंगे। फिर उनकी इंडेक्सिंग करके घटाएँगे।
इंडेक्सिंग क्या है?
इंडेक्सिंग करके कैसे कैपिटल गेन निकलेगा इसको हम एक उदाहरण से समझेंगे। जैसे एक प्रॉपर्टी 1970 में 10,000 रुपये में खरीदी। मई 2005 में उस पर कंस्ट्रक्शन के 2 लाख रुपये खर्च किए। दिसम्बर 2018 में 15 लाख में बेच दी। बेचते समय ब्रोकरेज 2% का भुगतान किया। सबसे पहले 15 लाख में से 2% ब्रोकरेज रुपये 30,000 घटेगा। फिर 14,70,000 रुपये नेट प्रतिफल आ गया। चूंकि प्रॉपर्टी 01.04.2001 से पुरानी है तो 01 अप्रेल 2001 की फेयर मार्किट वैल्यू लेंगे, जो 1 लाख रुपये है। अब 1 लाख की इंडेक्सिंग करेंगे तो 100 का भाग देंगे क्योंकि 2001-02 की इंडेक्स 100 है तथा 280 से गुणा करेंगे क्योंकि 2018-19 (बेचने के वर्ष) की इंडेक्स 280 है। अतः इसकी जो 01.04.2001 की जो एक लाख रुपये वैल्यू थी उसकी इंडेक्स्ड वैल्यू 2,80,000 रुपये हो गई।
वित्तिय वर्ष 2005-06 में 2 लाख रुपये का कंस्ट्रक्शन किया है उसकी इंडेक्सिंग के लिए 117 से भाग देंगे क्योंकि यह 2005-06 की इंडेक्स है तथा 280 से गुणा करेंगे क्योंकि यह बेचने के वर्ष की इन्डेक्स है। इस तरह से इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ इम्प्रोवमेंट दो लाख की जगह 4,78,632 होगी। अतः इंडेक्स्ड वैल्यू 2,80,000 प्लस इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ इम्प्रोवमेंट 4,78,632 को जोड़कर रुपए 7,58,632 आएगा। इसको नेट consideration रुपये 14,70,000 में से घटाएँगे तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन रुपये 7,11,368 रुपये आएगा।
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर कौन कौन सी छूट मिलेगी तथा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर किस दर से टैक्स लगेगा तथा टैक्स की गणना कैसे होगी, यह नेक्स्ट सिरीज़ में।
- सीए रघुवीर पूनिया, 9314507298
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पिछली कड़ी 3 पर संक्षिप्त टिप्पणी:- पिछली कड़ी में मैंने लिखा शॉर्ट टर्म कैपीटल गेन में से और कोई छूट नहीं मिलेगी। इसका मतलब है कि इस कैपिटल गेन चैप्टर की कोई छूट शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर नहीं मिलेगी तथा शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्सेबल इनकम का हिस्सा बन जाएगा। उसके बाद चैप्टर VI A की एलआईसी प्रीमियम आदि के डिडक्शन मिलेंगे।
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