आजकल हर व्यक्ति का कभी न कभी कैपिटल गेन टैक्स से पाला पड़ रहा है। क्योंकि पुराने जमाने में व्यक्ति अपनी बचत का इन्वेस्टमेंट बैंक एफडी, पोस्ट ऑफिस, पीपीएफ,एलआईसी, घर में नकदी, मित्रों को हाथ उधारी में करता था। गहने शादी ब्याह या स्टेटस के लिए बनवाए जाते थे , बेचे नहीं जाते थे।
आज इंसान अलग अलग तरह से इन्वेस्टमेंट करता है जैसे सोने में, चाँदी में, शेयर्स में, म्यूच्यूअल फण्ड में, विभिन्न प्रकार की प्रॉपर्टी में ( जैसे कृषि भूमि में, प्लॉट में, मकान में, फ्लैट में, काम्प्लेक्स में, दुकान की जमीन में, बनी बनाई दुकान में आदि), प्रॉपर्टी के जॉइंट वेंचर होते हैं। ऐसे में जब भी निवेश को लिक्विड में कन्वर्ट कराया जाता है या बेचा जाता है तो कैपिटल गेन टैक्स लगता है।
मेरे पास अक्सर ऐसे मामले आते हैं जिनमें अज्ञानता की वजह से लोग कैपिटल गेन को लेकर परेशानी में आते रहते हैं तथा बड़ी मात्रा में टैक्स, ब्याज व पेनल्टी भुगतनी पड़ती है। कुछ मामलों में प्रॉसिक्यूशन भी फेस करना पड़ता है। इसलिए मैं कैपिटल गेन पर एक सीरीज लिख रहा हूँ। उसके लिए दो तीन शब्द हमें ठीक से समझने होंगे। जैसे कैपिटल असेट क्या है अर्थात किस किस प्रॉपर्टी को बेचने पर कैपिटल गेन की लायबिलिटी बनती है। अगर कोई प्रॉपर्टी आयकर के अनुसार कैपिटल असेट नहीं है तो उस पर कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगेगा जैसे बर्तन, कार, घड़ी आदि।
दूसरा बिंदु आता है जो प्रॉपर्टी बेची जा रही है वह शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट है या लॉन्ग टर्म कैपिटल एसेट है। शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट को बेचने पर कैपिटल गेन की गणना का अलग तरीका है, टैक्स की रेट भी अलग है। लॉन्ग टर्म कैपिटल एसेट को बेचने पर कैपिटल गेन की गणना अलग तरीके से होगी। लॉन्ग टर्म कैपीटल गेन पर टैक्स की रेट भी अलग है।
आप आपके प्रश्न भी करते रहें और सुझाव भी देते रहें। सुझावों व प्रश्नों का यथा समय मैं जवाब देता रहूंगा।
- सीए रघुवीर पूनिया, 9314507298
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