जयपुर। राष्ट्र की गरिमा में बड़ा महत्त्व रखने वाले राष्ट्रचिन्हों का गैर-कानूनी इस्तेमाल देश में तेजी से बढ़ रहा है। इस संबंध में न सरकार सख्त है और न ही राष्ट्र की गरिमा को संरक्षण देने वालों को सुध है। आलम यह है कि सरकार ने केवल भारत के राष्ट्रीय चिन्ह (अवैध उपयोग का प्रतिषेध) अधिनियम 2005 बना कर इतिश्री कर ली है, वहीं इसे लागू करवाने में प्रशासन और संबंधित मंत्रालय लापरवाही बरत रहे हैं। मिसाल देखिए गाडिय़ां हो या फेसबुक पेज, मोबाइल एप्प हो या विजिटिंग काड्र्स कानून को दरकिनार करते सरकारी, गैर सरकारी लोग बड़ी संख्या में राष्ट्रचिन्हों का गैर-कानूनी इस्तेमाल कर रहे हैं। जिसे लेकर न कोई रोकथाम हो रही है और न ही सरकारी स्तर पर कोई कार्रवाई।
राष्ट्रीय चिन्हों के गैर-कानूनी इस्तेमाल की जानकारी जुटाने के लिए इट्स इंडिया की टीम ने सबूत जुटाने शुरू किए, तो खुलकर सामने आया कि कानून की धज्जियां उड़ाने वाले किस कदर हावी हैं। इस संबंध में टीम ने ऐसे तथ्य जुटाए जो यह साबित करते हैं कि किस प्रकार राष्ट्रीय प्रतीकों का गैर-कानूनी इस्तेमाल बदस्तूर जारी है और प्रशासन व सरकार इस बेहद गंभीर मसले को लेकर बेफिक्र हैं। गूगल एप्स के जरिए मोबाइल एप्स मुफ्त व सशुल्क उपलब्ध हैं, लेकिन पड़ताल में पता चला कि अशोक स्तंभ का इन मोबाइल एप्स के जरिए बड़े पैमाने पर गैर-कानूनी इस्तेमाल किया जा रहा है। एक गैर-सरकारी एप्प ई-टेंडर्स इंडिया तो अशोक स्तंभ का व्यावसायिक इस्तेमाल भी कर रही है। एप्प पर अशोक स्तंभ लगा हुआ है और एप्प की कीमत 921 रुपए वसूली जा रही है। वजह पता चली, बड़े बेरोजगार वर्ग को सरकारी एप्प होने का झांसा देकर आकर्षित किया जा रहा है। एक्ट के अनुसार जहां यह उपयोग संवैधानिक पदों पर रहने वाले व्यक्ति ही भारत में कर सकते हैं, वहीं अब इनका इस्तेमाल हर कोई करने लगा है, जो देश के आम आदमी की भावनाओं को आहत करने वाला है।
मामला गंभीर, मंत्रालय बेसुध!
गूगल एप्स पर कई ऐसी एप्प हैं, जिनमें अशोक स्तंभ का गैरकानूनी इस्तेमाल जारी है। इनके मुख्य लोगो के तौर पर न केवल राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल किया जा रहा है, बल्कि राष्ट्रीय चिन्ह को पेश कर देश के आम जनता को गुमराह करने का प्रयास किया जा रहा है। इस पड़ताल में उन एप्स की जानकारियों को जुटाया गया, जिनके जरिए अशोक स्तंभ का बेजा गैर-कानूनी इस्तेमाल जारी है और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय सहित सरकार मामले को लेकर बेसुध हैं। इन एप्स पर अशोक स्तंभ के गैर-कानूनी उपयोग को लेकर अभी तक सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तक ने कोई सुध नहीं ली है। जबकि बीते कुछ समय में इंटरनेट और एप्स पर इस तरह के गैर-कानूनी उपयोग का चलन जोर पकड़ रहा है। मामला इस हद तक पहुंच चुका है कि अशोक स्तंभ का व्यावसायिक और गैर-कानूनी इस्तेमाल करने वालों की एप्स हजारों मोबाइलों तक पहुंच बना चुकी हैं।ई-टेंडर्स इंडिया एप्प की कीमत रु. 921 है, जो भारत के राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल करते हुए ली जा रही है। राष्ट्रीय प्रतीक का व्यावसायिक इस्तेमाल भी भारत के राष्ट्रीय चिन्ह (अवैध उपयोग का प्रतिषेध) अधिनियम 2005 के अनुसार इस संदर्भ में गैर-कानूनी है। सवाल बड़ा है कि ऐसे गम्भीर मामलों में अगर सरकार ही सुध नहीं लेगी, तो कौन लेगा? आखिर कौन लगाएगा लगाम इस तरह कानून का मखौल उड़ाने वालों पर। यह सारा मामला राष्ट्र की गरिमा, और राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों से जुड़ा होने की वजह से अहम भी है और समाधान योग्य भी है।
सरकार सख्त हो...
राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों का गैर-कानूनी इस्तेमाल गम्भीर मसला है। सरकार को इस संबंध में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और राष्ट्रव्यापी अभियान चलाना चाहिए। यह राष्ट्र की गरिमा से खिलवाड़ है, जिसे न सरकार बर्दाश्त करेगी और न ही आम आदमी। ऐसे मामलों में आम जनमानस की भावनाएं आहत होती हैं, इसलिए इस संबंध में सरकार को त्वरित कार्रवाई कर मिसाल कायम करनी चाहिए। इससे भविष्य में इस तरह का कृत्य करने से लोग बचेंगे। हमारे देश में कानून सर्वाेपरी है, सरकार सख्त होगी, तो लोग कानून की पालना करेंगे और इस तरह के कृत्य करने से बचेंगे।
- सुरेन्द्र ढाका, वरिष्ठ अधिवक्ता, जयपुर
तुरंत हो कार्रवाई...
कानूनन राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों इस्तेमाल जब संवैधानिक पदों पर नियुक्ति वाले लोग ही कर सकते हैं, तो इस तरह आम आदमी द्वारा या कंपनियों द्वारा व्यावसायिक इस्तेमाल पर सरकार को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। यह राष्ट्र की गरिमा से जुड़ा मामला है, जिसमें उच्च स्तर पर तुरंत हल निकाले जाने की जरूरत है। ऐसे संवेदनशील मामलों में त्वरित कार्रवाई जरूरी है, ताकि राष्ट्र की गरिमा से खिलवाड़ करने वाले ऐसे मामलों की संवेदनशीलता समझे और भविष्य में ऐसे कृत्य करने से बचें। सरकार को इस मामले में ठोस और त्वरित कदम उठाने चाहिएं, ताकि ऐसे लोगों को तुरंत रोका जा सके।
- मनीष तिवारी, संयुक्त निदेशक, एसपीआरआई, जयपुर
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