मैं जो भी हूँ
मैं जैसी भी हूँ
मुझे खुद पर नाज़ है।
मज़बूत नींव, मेरे टूटे सपनों की,
थामे मेरा आज है।
मैं जो भी हूँ,मैं जैसी भी हूँ, मुझे खुद पर नाज़ है
तुम्हारे सपनों को हर पल जीती रही
ख्वाहिशें अपनी घूँट घूँट पीती रही
कभी तन के तो कभी मन के
ज़ख्म खुद ही सीती रही
अपमान,तिरस्कार,गैर-बराबरी की
कड़वी गोली हर बार निगलती रही
अब थक गई हूँ मैं,सहना छोड़ दिया है मैंने
अपना बहुत कुछ तोड़ कर,खुद को जोड़ लिया है मैंने
अब मेरे अपने गीत हैं,मेरे अपने साज़ हैं
मैं जो भी हूँ ,जैसी भी हूँ ,मुझे खुद पर नाज़ है
तुम्हें शिकायत मेरी हर बात से
मेरी रूह से ,मेरे जज़्बात से
गाली तुम्हारा तकिया कलाम है!
मैं मुंह खोलूं तो कहते बदज़ुबान है!
ऐसे मत बोलो ,वैसे मत सोचा करो
ये न करो वो न करो
यंहा न जाओ वंहा न जाओ
उफ्फ!
क्या अपने क्या पराये
सबने अपने हुक्म चलाये
बंद करो अब ये सब कहना!
अब थक गई हूँ मैं ,ये सब सुनना छोड़ दिया है मैंने
अपनी उड़ान को,एक नया मोड़ दिया है मैंने
अब मेरे अपने पंख हैं, मेरी अपनी परवाज़ है
मैं जो भी हूँ ,मैं जैसी भी हूँ ,मुझे खुद पर नाज़ है।
तुम्हारी नाक ज़रा मोटी है
तुम्हारे चेहरे पर तिल बहुत हैं,
तुम ऐसे कपडे पहना करो कमाल लगोगी
तुम्हारे चेहरे पर लाइंस दिखने लगी हैं
लोग क्या कहेंगे गर मेरे साथ चलोगी !
तुम ऐसी बिंदी लगाया करो
तुम वैसी लिपस्टिक लगाया करो
मोटी हो रही हो ज़रा कम खाया करो !
उफ्फ!
बहुत हुआ अब बस करते हैं
खुद को भी ज़रा देख लो,घर में शीशे भी रहते हैं
अब थक गई हूँ मैं दिखना दिखाना छोड़ दिया है मैंने
ख़ामोशी की दीवार को अब तोड़ दिया है मैंने
अब मैं बोलती भी हूँ ,मेरी अपनी आवाज़ भी है
मैं जो भी हूँ ,मैं जैसी भी हूँ ,मुझे खुद पर नाज़ है।
- हेमलता शर्मा
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