आज चट्टे बहुत गुस्से में था। उसके नथुने फूल रहे थे। उसने अपनी कलम निकाली और उसे तलवार से भी तेज समझ के एक कार्टून बना डाला। ट्रेन की पटरी पर बिखरी रोटियां और खून के छींटे, ये मौत सरकार के माथे पर। कार्टून वायरल हो गया। देश में मजदूरों की हालत पर चुटकी लेता ये कार्टून घंटे भर में लाइक और टिप्पणियों से भर गया। चट्टे बाग बाग हो गया और खुशी में एक पैग ज्यादा पी गया। दुकान खुली हुई थी तो कोई दिक्कत नहीं थी। उसने नज़र भर कर एक बार फिर अपने कार्टून को देखा और सोचा, कितनी सटीक बात कह दी थी उसने। उसे लगा बस इस कार्टून से मजदूरों को उनका हक मिल जायेगा। कार्टून बट्टे के मोबाइल पर भी पहुंचा। बट्टे हत्थे से उखड़ गया। ये क्या मूर्खता है? बिस्तर पे सोने की जगह पटरी पे सो गए और इस बेवकूफी पर कार्टून भी बना दिया। बट्टे का सरकार के प्रति समर्थन छलांग मार कर बाहर आ गया। बट्टे के हाथ फड़फड़ाने लगे। उसने दो पैग हलक से उतारे और कलम उठा ली। बट्टे ने सरकार का बचाव करता एक धांसू लेख लिख डाला। कुछ लोगों के अमाशय में गड़बड़ है, जब तक सरकार को गाली और दोष ना दे दें तब तक खाना पचता ही नहीं। अरे हर बात के लिए सरकार ज़िम्मेदार है क्या? रामलाल की बीवी श्यामलाल के साथ भाग गयी इसमे सरकार क्या करेगी। बस चढ़ दौड़ो सरकार पे। भाई साहब पूरी FB हिल गयी। लेख जबरदस्त हिट। बट्टे को लगा अब सरकार उसको भारत रतन नहीं तो पद्मश्री तो दे ही देगी। फिर तो चट्टे और बट्टे के समर्थन में FB कुरुक्षेत्र हो गया और कॉमेंट की महाभारत छिड़ गयी। देश में गरीबी, भुखमरी, मजदूरों के पलायन एवं निर्लज्ज सरकार पर उदाहरणों के बाण, भाले और गदायें चलने लगीं। सरकार सो रही है। लॉक डाउन सही वक्त पे नहीं किया। मजदूरों का कोई नहीं है। रोटी और पैसों को मोहताज हैं वो। चट्टे के सैनिक सवालों की तोप दाग रहे थे। बट्टे के योद्धा कहाँ कम थे। वो देश की तुलना पूरे विश्व से कर रहे थे। अमेरिका, इटली ब्रिटेन से महान बता रहे थे। उनके पास इलज़ामों को काटने वाली तलवारें थीं। सरकार अच्छा काम कर रही है। ये किसी को बर्दाश्त नहीं हो रहा। इस महामारी को इतने अच्छे तरीके से हैंडल कर रही है कि पूरा विश्व भारत की ओर ही देख रहा है। मगर इस आपातकाल में भी कुछ लोग राजनीति कर रहे हैं। वो मजदूरों के नाम से अपनी रोटी सेक रहे हैं। हद है। कोई इतना भी नहीं गिरे। चट्टे के एक सेनापति के अंदर का विरोधी दहाड़ा.. अर्थव्यवस्था पटरी पर आ नहीं रही इनसे... बस मजदूरों की लाश पटरी पे ला रहे हैं। इतना सुनना था कि बट्टे का महारथी बोला, जब कहा गया था कि जो जहाँ है वहीं रहे तो फिर बाहर निकलने का मतलब क्या हुआ। आना जाना कोई नहीं चाहता। ये लोग भड़का रहे हैं। ये लोग चाहते हैं कि सरकार कोरोना की लड़ाई में नाकाम हो जाए। चट्टे ने एक पैग और पिया और आमलेट का नाश्ता करते करते गरीब विरोधी एवं अमीरों की सरकार की नाकामी पर दो लाइक कबाडू टिप्पणी कर डाली। लॉक डाउन के आगे की प्लानिंग क्या है? जिनके काम धंधे छूट गए उनका क्या होगा? बट्टे के एक हाथ में आलू का पराठा था। उसने गुस्से में उसका बटका भरा। खाते हुए उसने दूसरे हाथ से ही टिप्पणी का जवाब दे डाला। अगर ये लॉक डाउन नहीं होता तो संक्रमितो की संख्या पांच लाख से ज्यादा होती। ये सरकार की दूरंदेशी है कि उसने हालत को संभाल लिया।
युद्ध अपने चरम पे था। पर इस युद्ध का कोई नियम तो था नहीं जो सूर्यास्त पे शंख बजता और ये समाप्त हो जाता। युद्ध निरंतर जारी था। अर्ध रात्रि के बाद भी और सुबह तक भी।
दोपहर को चट्टे बहुत उखड़े मूड में था। उखड़े मूड में वो हमेशा मूड बनाता था। मूड बनाने का सामान दुकान पे लेने पहुंचा तो बट्टे को वहाँ पहले से मूड बनाता देख उसी के पास चला गया। गुस्से से चढी त्योरियों के साथ उसने बट्टे को झिंझोड़ा। देश में बढ़ते कोरोना के आंकड़ों पर अपना लेटेस्ट कार्टून दिखाया। ये आत्मनिर्भरता क्या होती है यार। हर बार आकर उल्लू बना जाते हो। तुम इस देश का बँटाधार कर के ही मानोगे। बट्टे बची कुची बोतल एक साथ पी गया। जब उसका पारा सातवें आसमान पे होता है तब वो यही करता है। खाली बोतल गुस्से में सड़क पे पटकता बट्टे बोला, देश का तो सत्तर साल से बँटाधार हो रहा है और ये इस देश का दुर्भाग्य है कि ये तुम्हारे जैसों के हाथों में रहा। चट्टे और बट्टे में हाथापायी हो गयी। लात घूंसे चल गए। इस अद्भुद देश के दो महारथी कर्ण और अर्जुन ठेके के सामने धराशाई हो गए।
ठेके पे एक मज़दूर और एक नेता शाम के लिए माल खरीद रहे थे। नेता ने मज़दूर को देखा तो नेतागिरी जाग गयी। उसने अहसान निकाला और मज़दूर पे लाद दिया। हमने हज़ारों मजदूरों को घर पहुंचा दिया। तुम चिंता मत करो हम तुम्हारे साथ हैं। हम तुम्हे आत्मनिर्भर बनाएंगे। मजदूर को समझ नहीं आया कि ये क्या बला होती है। नेता बोला, तुम्हारा भाई मरा उसके मुआवजे की व्यवस्था हम करेंगे। मज़दूर हंस दिया। अहसान लेकर वो सड़क पे जा रहा था। उसके हाथ में जो बोतल थी उसके अंदर इतनी ताकत थी कि वो उसके हर गम को भुला देती थी। उसे मुआवजे और नेता जी के साथ की कतई चिंता नहीं थी.. क्योंकि वो उसे कभी नहीं मिले। आत्मनिर्भरता उसके पल्ले ही नहीं पड़ी। उसने एक घूँट भरा और सब भूल गया। जब से ये देश बना है तब से वो यही करता आ रहा है। नेता ने भी वही किया जो मज़दूर ने किया। दो घूँट पिया और सब कहा भूल गया । सत्तर साल से इस देश में यही हो रहा है। मजदूर अपना दर्द भूल जाता है। नेता मज़दूर को भूल जाता है। और इस लड़ाई से कोई फ़ायदा नहीं है, ये चट्टे बट्टे भूल जाते हैं।
- तपन भट्ट
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