जयपुर। जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का दूसरा दिन देश दुनिया से आए फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों, लेखकों, अभिनेताओं – अभिनेत्रियों के आपसी संवाद के नाम रहा। जीटी सेन्ट्रल के आइनॉक्स में एक ओर सुबह से रात तक फिल्मों की स्क्रीनिंग चल रही थी, तो दूसरी ओर इसमें शिरकत करने आए फिल्मकार विभिन्न विषयों पर एक दूसरे से विचार – विमर्श करते नज़र आए। इन फिल्मकारों का यह मानना था कि जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल विश्व का एकमात्र ऐसा फिल्म फेस्टिवल है, जो फिल्मकारों को आपसी बातचीत का मौका भी देता है। इस सम्बन्ध में फिल्मकारों की आपसी बातचीत के दौरान चेन्नई से आए कामराज सुन्दरम् ने बताया कि उन्होने वॉइलेंस और सेक्सुएलिटी के खिलाफ़ फिल्म का निर्माण किया है। वह हमेशा विभिन्न सामाजिक विद्रूपताओं पर आधारित फिल्मों का निर्माण करते आए हैं।
हर आदमी में छिपी होती है एक कहानी – सुनील पप्पू
फिल्म समारोह में दिल्ली से आए कहानीकार सुनील पप्पू ने कहा, मैं पैदाइशी एक कहानीकार हूं और मानता हूं कि हर आदमी में एक कहानी छिपी हुई है। किसी में संगीत की कहानी होती है, तो किसी में चित्रकला से जुड़ी कोई कहानी होती है। मेरे भीतर जो कहानी छिपी है, मैं उसे लिख कर स्क्रीन पर प्रस्तुत करता हूं। उन्होने कहा कि कहानी लेखन के क्षेत्र में हमारी जड़ें अभी भी कमज़ोर हैं, उन्हें मज़बूत करना ही मेरा एकमात्र उद्देश्य है। आगे उन्होने कहा कि फिल्मों से सौ करोड़ कमाना मेरा मक़सद नहीं है, मैं इस क्षेत्र में एक परम्परा स्थापित करना चाहता हूं।
विभिन्न भाषाओं का अद्भुत संगम है जिफ - औरूनाभो खशनोविश
जिफ में कोलकाता से आए फिल्म ललाबाय के निर्देशक औरूनाभो खशनोविश और प्रोड्यूसर डॉल्फिन ने बताया कि उनका उद्देश्य फिल्मों के ज़रिए ज़िंदगी के अनुभव समाज में बांटना रहा है। आम आदमी को फिल्म नहीं, उसकी कहानी पसंद आती है। यहां तक कि समूची मानव जाति कहानियों से जुड़ाव महसूस करती है। फिल्म कैसी होनी चाहिए, यह फिल्मकार की निजी पसंद है। फिल्मकारों को हमेशा अपनी संस्कृति को ध्यान में रखकर फिल्म बनानी चाहिए। उन्होने बताया कि यह उनकी चौथी फिल्म है और उन्होने अकेले ही फिल्म का निर्देशन, सिनेमेटोग्राफी, साउंड डिजाइनिंग और एडिटिंग का जिम्मा सम्भाला। उन्होने जिफ को विभिन्न भाषाओं का अद्भुत संगम मानते हुए कहा कि यहां एक ही मंच पर दुनिया की सारी भाषाओं की फिल्में देखने को मिलती हैं।
भारत आकर लगा, जैसे दूसरा घर हो - जूलिया गोर्बाचेव्सक्या
रशिया से आई फिल्मकार जूलिया गोर्बाचेव्सक्या ने बताया कि वे भारत पहली मर्तबा आई हैं और उनका अनुभव मज़ेदार रहा है। द लॉन्ग थेरेपी इज़ इनेविटेबल फिल्म की निर्देशक जूलिया ने कहा कि उन्हें भारत में बिल्कुल ऐसा ही महसूस हुआ है, जैसे यह उनका अपना घर हो। जिफ का जिक्र करते हुए उन्होने कहा कि इस फिल्म फेस्टिवल ने नए फिल्मकारों के लिए भी दरवाज़े खोलने का अद्भुत कार्य किया है, जो किसी सुनहरे अवसर से कम नहीं है।
ईरान के लोग बॉलीवुड के दीवाने हैं – मरियम पिरबैंड
ईरान से पहुंची फिल्मकार मरियम पिरबैंड ने कहा कि उनकी फिल्म डैंडलिऑन सीज़न, जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ना केवल प्रदर्शित हुई, बल्कि इसने अवॉर्ड भी हासिल किया, जो उनके लिए यादगार अनुभव रहा। मरियम ने बताया कि वे दूसरी मर्तबा फिल्म समारोह में आई हैं और उम्मीद करती हैं कि इसी तर्ज पर फिल्म समारोह आयोजित होते रहें, और वे नए फिल्मकारों से मिलती रहें। उन्होने बताया कि ईरान में लोग बॉलीवुड की फिल्मों को बहुत पसंद करते हैं, और यहां के संगीत और सुन्दरता के दीवाने हैं।
दिलचस्प रही है भारत की यात्रा - डेविड मिलर
यू.एस.ए. से आए स्क्रीन राइटर डेविड मिलर ना केवल जिफ, बल्कि भारत भी पहली मर्तबा ही आए हैं। ले टुअर काश्मीर फिल्म के लेखक डेविड बताते हैं कि यहां उन्हें कई दिलचस्प अनुभव हो रहे हैं, और बहुत ही अच्छे कहानीकारों, लेखकों और निर्देशकों से मिलने का अवसर मिल रहा है। अपने रोचक अंदाज में उन्होने बताया कि हिन्दी फिल्मों में उन्हें लगान बहुत पसंद आई थी।
लगातार रहा फिल्मों का प्रदर्शन
जीटी सेन्ट्रल स्थित आयनॉक्स में जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन 10 देशों की 31 फिल्में दिखाई गईं, जिनमें मरियम पिरबैंड की डैंडलिऑन सीज़न और अंकित शर्मा की शॉर्ट फिक्शन फिल्म रिंग ख़ास रही।
आज की ख़ास फिल्में
आज 13 देशों की 23 फिल्में प्रदर्शित होंगी, जिनमें ख़ास रहेंगी पोलेंड की कार्टिया प्रीवीजिनक्यू की फीचर फिक्शन फिल्म लीडर, जिसने कई अवॉर्ड्स अपने नाम किए हैं। दूसरी ख़ास फिल्में रहेंगी, रोमानिया के रॉबर्ट इयुगन पोपा की फिल्म मून और यशपाल शर्मा की दादा लखमी।
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